Saturday, July 10, 2010

आपके मन में होता है PET KE रोगों का उदगम!

आपने सुना होगा की किसी के पेट में हमेशा दर्द रहता है गैस बनती है कब्ज़ा रहती है जलन होती है अदि! इसके अलावा उसने कई ड़ोक्टोरो को दिखाया जांचें कराइ लेकिन आराम मिला और नहीं कोई बीमारी पकड़ में
यह तकलीफ कहाँ से रही हैआपके मन से..... जी हाँ! आपका मन ही रोग और आरोग्य का कारन हैज्यादा चिंता करने वालो को पेट में मरोड़ होती हैदुसरे से जलने वालो को पेट में गैस बन जाती है, अल्सर हो जाते है, हमेशा पेट दर्द का रहना यानि अनिर्णय और अनिश्चितता के वातावरण में व्यक्ति जी रहा हैऔर जब तक मन से यह स्थिति नहीं जाती लक्षण समाप्त नहीं होते भले ही कितनी जांचें कराएँ और दवाईया खाएं
कब्ज़ा कौई बीमारी नहीं है जो लोग कंजूस होते है उन्हें कब्ज हो जाती है हर चीज को पकड़ने की आदत हो जाती हैफिर उसे छूटने के लिए कितना चूरन खाते हैं
आदमी को खासकर पेट के रोगों में इलाज से ज्यादा एदुकतिओन और काउंसेलिंग की जरूरत हैजब आदमी अपनी भावनाओ को किसी के साथ शेयर नहीं करता तो भीतर गैस बन जाती हैऔर एन चीजो का कोई इलाज नहीं सिवाय एन ग्रंथियों से मुक्त होने के
मन की हलचल और ऊहापोह से शारीर में वायु का संग्तुलन बिगड़ जाता है यानि प्रकोप हो जय और यही प्रकुपित वायु लाब्म्बे दिगेस्तिवे सिस्टम की स्पीड बाdha या घटा देती हैउसी से उदार रोगों का जन्मा होता है

Friday, June 4, 2010

कैसा हैं आपका चेहरा ?

मनुष्य का चेहरा उसके व्यक्तित्व के बारे में बताता है-

अंडाकार चेहरा- जिस मनुष्य का चेहरा अंडाकार होता है वह आदर्शवादी , भावुक, बेकार की बातें सोचने वाला
कल्पनाशील , दिन में सपने देखने वाला होता है.इन्हे आपने आपको थोडा प्रक्टिकल बनाने का प्रयास करना चहिये
तो जीवन में सुख सफलता ज्यादा मिलेगी।

वर्गाकार चेहरा- जिस मनुष्य का चेहरा देखने में चोकोर लगता है ऐसे लोग बहुत उत्साही ,प्रक्टिकल और प्रगतिशील होते है। ये हार मानकर नहीं बैठते है बल्कि जितने के लिए बार-२ उठ खड़े होते है.इसलिए इनके पास
धन की कमी नहीं रहती है.समस्या तब अति है जब ये काम को बार -२ बदलते हैं.

तिकोना चेहरा-यह बहुत धूर्त और अवसरवादी होते है, इनके अंदर फल का इंतज़ार करने का धैर्य नहीं होता है
अतः ये कच्चे फ्रल ही खा जाते है अर्थात दूसरो को, धोखा देते है। ध्यान और धर्मं के पालण से सुधर होता है.

गोल, चेहरा -
जिन लोगो का चेहरा गोल होता है उन्हें शीशा देखने से फुरशत नहीं मिलती है, ये सोचते है की यदि मेरा चेहरा और अच्छा होता तो ठीक रहता इन्हे याद रखना चाहिए की सौंदर्य चेहरे में नहीं व्यवहार में होता है.इन्हे बेऔटी,
फैशन और क्रेअटिवे प्रयासों में ज्यादा सफलता मिलती है।

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हस्त -रेखाएं और आप!...........

प्रश्न- हस्तरेखा विज्ञानं यानि पामिस्ट्री का आधार क्या है?
उत्तर- हमारे शाश्त्रो में लिखा है क़ि -
आयुहा कर्म च वित्तामा च विद्या निधानामेवा च
पंचैतानी विलिख्यान्ति गर्भाश्थैवा देहिनः।
अर्थात- संसार में आने वाले मनुष्य की आयु कितनी होगी, कर्म क्या करेगा धन कितना कमाएगा विद्या कितनी होगी और मृत्यु किस कारण से होगी? यह पंचा बातें माँ के गर्भ में ही निर्धत्रित हो जाती है और हथेली में लिख जाती हैं इसलिए हथेली को इश्वेर द्वारा बने गयी जन्मकुंडली कहते हैं।

प्रश्न- कई बार उपाय करने के बोजूद सफलता नहीं मिलती?
उत्तर- हाँ ! एक तो समस्या से सम्बंधित उपाय ही बताने चाहिए छोटे अवं सरल उपाय जो काम करते हैं वे भरी भरकम खर्चीले उपाय भी नहीं कर पाते। उपायों के बोजूद अगर जीवन में वांछित सफलता न मिले तो मद्य मांस भ्रून्हात्या परनारी या पुरुष का सेवन करना छोड़ दें।
प्रश्न- हाथ देखने में पारंगत होने का क्या उपाय है?
उत्तर- हाश्तारेखा की पुश्ताके पढ़कर हाथ देखना ऐसा ही है जैसे पलने रुन्वय पर दौड़ रहा हो लेकिन रुन्वय में तो बस भी दौड़ सकती है सवाल है जमीं छोड़कर उड़ने का , बस और प्लेने के बीच द्फार्क उड़ने का है और उड़ान वाही ले सकता है जो संयमी अवं साधक हो। गुरु अवं इष्ट की कृपा प्राप्त की हो। पारंगत होने के लिए विषय के अध्ययन के साथ इश्वेरिया कृपा बहुत जरूरी है।
प्रश्न-आयुर्वेद अवं हाश्तारेखा विज्ञानं में क्या सम्बन्ध है?
उत्तर- आयुर्वेद आपको बतात है की एस समय आपको क्या रोग है और उसका क्या इलाज है जबकि हाश्तारेखा विज्ञानं से पता चलता है की आने वाले समय में आपको किस तरह के रोग हीओ सकते हैं। किस प्रकार अपनी जीवन shaillymen परिवर्तन करके खानपान ठीक करके तथा आयुर्वेदिक औषधियों का सेवन करके आप भावी रोगों से बचाओ कर सकते हैं।
प्रशन- हथेली दिखाने से क्या लाभ होते है ?
उत्तर - अगर मनुष्य को पता चल जाये की उसका स्वभाव कैसा है ,कौन सा काम उसे सफलता देगा किस क्षेत्र
में वह नाम अवं धन कमाएगा कौन से रोग उसे जीवन में घेर सकते है अच्हे समय वह कैसे ज्यादा सफलताये प्राप्त करे और बुरे समय में कैसे अपने को सीमित कर के दुखों से बचे ? तो निशित रूप से उसका जीवन ज्यादा सार्थक अवं सफल होगा और यह मार्ग दर्शन हस्तरेखाओ के अध्यन से प्राप्त किया जा सकता है ।
प्रश्न-हाथ कितने समय के अंतरअल में दिखाना चाहिए ?
उत्तर - प्रत्येक तीन माह पश्चात् हथेली की प्रभाव रेखाए बदल जाती हैं जिन्हें देखकर आपके कर्म अवं उसके परिणाम का डाटा बेस तैयार करके मार्गदर्शन किया जा सकता है।
प्रश्न- सामास्य समाधान में उपायों की भूमिका पर प्रकाशज डालिए?
उत्तर- संकटकाल में मनुष्य को चार चीजो की मदद लेनी चाहिए
मंत्र-यानि आपने से बड़ो की सलाह
ओषधि- व्याधियो के विनाश के लिए
तप- जो कष्ट आया है उसे इश्वेर की इच्छा समझकर सहन करना
दान- कई बार धन संग्रह किए दौरान दोषों का भी संग्रह हो जाता है दान से मन कर्म वचन में निर्मलता अति है
इसी प्रकार भक्ति पूजा अनुष्ठान रत्नाधारण करने से परेशानियाँ कम हो जाती है।
इश्वेर कल्याण करें!

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परोपकाराय पुण्याय पापस्य पर्पिदानाम!...........

एक समय की बात है देवरिषि नारद भगवन नारायण का गुणगान करते हुए प्रथ्वी लिक में विचरण कर रहे थे , अचानक उनकी नज़र वेदव्यास पर पड़ी जो पुस्तकों के बीच ध्यानस्थ होकर बैठे हुए थे। नारद जी ने उन्हें प्रणाम की या और पूछा की आप इतनी पुश्ताके पढ़ रहे हैं क्या अभी भी आपको अध्ययन की जरूरत है? वेदव्यास जी ने कहा, नहीं नारद जी ये तो अठारह पुराण है जिनकी मैंने रचना की है यह मेरा सौभाग्य है की आप यहाँ पधारेमेरी समझ से अगर आप इनका अध्ययन कर ले तो मेरा परिश्रम सार्थक हो जाये आप अच्छे वक्ता होने के साथ -२ गतिशील भी हैं अतः इनके प्रचार प्रसार में सहायता कर सकते हैं।
नारद जी बोले इतनी किताबें देखकर ही मुझे बेचैनी हों रही है मैं ज्यादा देर तक एक जगह बैठ नहीं सकता अतः सभी पुरानो को पढना मेरे लिए तो संभव नहीं है, हाँ एक उपाय हो सकता है की आप मुझे संपूर्ण पुरानो का सार बता दें तो मैं उसे तीनो लोको में प्रचलित कर दूंगा फिर जिसे क्विस्द्तार से जानना होगा वह पुराणोंन को पढ़ेगा
पहले तो वेदव्यास जी बहुत निराश हुए की मैंने इतना समय अवं श्रम लगाकर पुराणों की रचना कीं और नारद जी पढने को राजी नहीं हैं फिर उन्होंने सोचा की नारद जी से अच्छा कोई प्रचारक तो मिल नहीं सकता इसलिए पुराणों का सार ही इन्हे बता दिया जाये.
अतः व्यास जी बोले ------
अश्तादशा पुरानेशु व्यशाश्य वाच्नाद्वायाम
परोपकाराय पुण्याय पापस्य पर्पिदानाम!
अर्थात इन १८ पुराणों में दो ही बातें मुख्या हैं - दूसरो पर उपकार करना दया अवं प्रेम रखना ही पुण्य है धर्मं है और किसी को पीड़ा पहुचना दुखी करना सबसे बड़ा पाप है !

आज जब धर्मं के नाम पर लोग बहस आडम्बर विवाद अवं युध पर उतारू हो जातवे हैं उनके लिए धर्मं का मौलिक अर्थ और वेदा पुरनियो का सार समझने का इससे सरल तरीका नहीं हो सकता , लोगो को भी यह समझना चाहिए की धर्मं पुण्य संयम पवित्रता अवं संतोष से रहित जीवन सुखी नहीं हो सकता है . धन कमाना अच्छी बात है लेकिन धन का उपयोग सिर्फ निजी सुविधाओ अवं भोग के लिए करना शारीरिक अवं मानसिक विकार पैदा करता है, जीवन में सुख अवं संतोष संसाधनों के संग्रह में नहीं बल्कि बाँटने में प्राप्त होता है।
इसीलिए हमरे ऋषियों ने समझाया की ' तें त्यक्तेन भुंजीथा' अर्थात -जिसने त्याग दिया उसने भोग लिया। जैसे आपकी जेब में १० रूपया है तो उन्हें भोगने के लिए पहले त्यागना होगा नोट को बिना त्यागे आप भोग नहीं कर सकते हैं।इसलिए भोग में जब आप दूसरो को शामिल कर लेते हैं तो उसका सुख कई गुना बढ़ जाता है.

प्राचीन काल से ही यज्ञ भंडारे भोज का यही उद्देश्य था , अकेले में खाए गए स्वादिष्ट व्यंजनों से वह तृप्ति मिल ही नहीं सकती जो सादे सामूहिक भोज से प्राप्त होती है, आज जब महानगरो में भीड़ और शोर बहुत बढ़ रहा है कही एकांत क्ल्होजना मुश्किल है फिर भी मनुष्य अकेला होता जा रहा है। उसकी न कोई सुनने वाला है न उसकी तरफ कोई देखने वाला। धन संसाधन अवं सुख सुविधाओ का धेर्ण लगाने की जैसे होड़ मची है व्यक्ति की पहचान सिर्फ उसके पद अवं पैसे से होती है लोग उदासीन होते जा रहे हैं, अवसाद्ग्रश्ता होकर आत्महत्या कर रहे हैं ऐसे में जितनी जल्दी यह बात समझ ले तो अच्छा है की-हम भूखे को अपना भिओजन दे सकें, और प्यासे को पानी पिला सके पीड़ित व्यक्ति को अपना समय दे सकें तो हम इश्वेर को प्रशन्ना करने के लिए अलग से किसी यज्ञ या अनुष्ठान की आवश्यकता नहीं पड़ेगी जैसा की वेदव्यास जी ने लिखा है-
अन्नादो जल्दश्च्युएब्व अतुराश्य चिकित्सकः।
त्रायन्ते स्वर्गमायान्ति विना यज्ञेन भारत ॥