Tuesday, February 1, 2022

भारतीय संस्कृति पर भारी बाज़ार| Materialism is exploiting the Indian culture.

प्रभु श्री राम के गुरु वशिष्ठ से लेकर #स्वामी_विवेकानंद तक सभी ने #ब्रह्मचर्य के महत्व को स्वीकार किया  है।  युवाओं में सर्वांगीण विकास के लिए #वैदिक काल से ही ब्रह्मचर्य के पालन पर जोर दिया जाता रहा है । #आयुर्वेद कहता है कि मनुष्य को  स्वस्थ रहने के लिये शरीर में वात पित्त कफ इन तीनों का संतुलित रहना जरूरी है।  और इन को संतुलित रखने के लिए तीन हथियार (स्तम्भ) हैं जिन्हें #आहार, #निद्रा एवं #ब्रह्मचर्य कहा जाता है।. www.palmveda.com


हमारे ऋषियों ने मनुष्य के जीवन को 25 - 25 वर्ष के  चार भागों में बांट दिया था।  जिनमें से प्रथम ब्रह्मचर्य,  दूसरा ग्रहस्थ, तीसरा वानप्रस्थ और चौथा संन्यास। ब्रह्मचारी का अर्थ है ब्रह्म जैसी चर्या। सिर्फ वीर्य को धारण करना ब्रह्मचर्य नहीं है। ब्रम्हचर्य मनुष्य जीवन की नींव है। ब्रह्म जैसी चर्या यानि स्वयं की तरफ जाती हुई चेतना का नाम है- ब्रह्मचर्य और दूसरों की तरफ जाती हुई चेतना का नाम कामवासना है। 25 वर्ष के लिए हम #युवकों को भेजते थे गुरुकुल में ताकि भीतर की तरफ बहना सीखें। एक बार आप इस #ऊर्जा को संभाल ले फिर आपको तय करना है कि इसे जारी रखना है या गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना है। लेकिन एक वैश्विक षड्यंत्र के तहत न सिर्फ इसकी निंदा की गई बल्कि बाजार ने ऐसी व्यवस्था की कि मनुष्य कामनाओं के पीछे जीवन भर भागता रहे। बाजार और विज्ञापनों की मृग मरीचिका ने एक ऐसा वातावरण तैयार किया कि मनुष्य जीवन भर बाहर भागता रहे लेकिन स्वयं से मिलने की कभी फुर्सत न मिले। क्षणिक सुखों के पीछे भागने वाले मनुष्य की इंद्रियां  ब्रह्मचर्य की महिमा को समझने में सक्षम नहीं हो पाती। अतः जो समझ में आता है वही सत्य लगता है।. Benefits of Neem


आज बाजार, विज्ञापन, फिल्में, सोशल मीडिया, पोर्न कंटेन्ट के माध्यम से जो अश्लीलता हजारों दरवाजों से परोसी जा रही है वहीं युवाओं के मन को चंचल और दुर्बल बनाने का काम कर रही हैं। " संगात्संजायते कामः" जिसके परिणाम स्वरूप शारीरिक एवं मानसिक रूप से दुर्बल  होते युवा तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे है । नई पीढ़ी में बढ़ते तलाक , सन्तानहीनता, शुक्राणुओं की कमी के मामले परिणाम के रूप में देखे जा सकते हैं।. Manage your cholesterol

आज जब आप यह लेख पढ़ रहे हैं यौवन दुनिया से विदा हो रहा है। कामुकता परोसने का बाजार का षड्यंत्र आईवीएफ और सरोगेसी के रूप मे फल फूल रहा है। योग से भी ब्रह्मचर्य को बहिष्कृत करके सिर्फ भोगने के साधन के रूप में परोसा जा रहा है। ऐसे युग में जहां चर्चित होना ही एकमात्र लक्ष्य हो। भले ही सार्वजनिक मंच से अपनी ब्रा की चर्चा करनी पड़े या  ऐतिहासिक महापुरुषों से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का घृणित प्रयास हो । वहां आपको तय करना है कि क्या दुनिया को डिमांड और सप्लाई के हिसाब से ही  चलने दिया जाए? या हर युग में आने वाली अच्छाईयों और  बुराइयों की समय के साथ समीक्षा की जाए और उनमें सुधार की संभावना तलाशी जाय? लोग अपनाएं या न अपनाएं अच्छी बातों की चर्चा जरूर होनी चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ियां यह न कहें कि हमें इस बारे में बताया ही नहीं गया।. Live for 100 years

Tuesday, July 27, 2021

भारतीय संस्कृति में आत्मनिर्भरता

कहते हैं कि वक्त का पहिया घूमकर फिर पुराने पड़ाव पर पहुंचता जरूर है। मौजूदा दौर पर यह बात एकदम मुफीद मालूम पड़ती है। फिलहाल पूरी दुनिया जिस कोरोना महामारी से जूझ रही है उसमें हमारे पुराने नुस्खे ही काम आ रहे हैं जिन्हें हम वक्त के साथ हाशिये पर डालते गए। जिस वायरस के आगे आधुनिक विज्ञान बेबस दिखाई पड़ रहा है उससे लोहा लेने में हमारी परंपराएं ही रक्षक साबित हो रही हैं। 

इन्हीं परंपराओं का प्रतिनिधि काढ़ा जहां हमें शारीरिक रूप से सशक्त बना रहा है तो वृहद परिवार वाली सामाजिक परंपरा हमें मानसिक संबल प्रदान कर अवसाद खत्म करने में मददगार बन रही है। स्पष्ट है कि अपनी परंपराओं से मुंह मोड़ना हमारे लिए कितना घातक साबित हुआ। आखिर हम ऐसी स्थिति में पहुंचे कैसे? इसे अवश्य समझना होगा। इसके लिए अतीत के कुछ पन्ने पलटने होंगे। जहां तक प्राचीन भारत का प्रश्न है तो उसमें सामाजिक, आर्थिक और स्वास्थ्य का तानाबाना आस्था, श्रम एवं सहभागिता से बना था। वास्तव में तब देश हर प्रकार से आत्मनिर्भर था। 

स्वास्थ्य के संबंध में भी।इसमें आयुर्वेद एक महत्वपूर्ण कड़ी हुआ करती थी। हमारी रसोई में ही औषधियां उपलब्ध थीं। उनसे छोटी-मोटी बीमारियों का इलाज संभव था। आयुर्वेद का उद्देश्य स्वस्थ व्यक्ति के स्वास्थ्य की रक्षा करना और बीमार के इलाज की व्यवस्था करना है। हमारे पास एक आस्थावान चिकित्सा पद्धति थी जिससे हम अपना इम्यून सिस्टम यानी रोग प्रतिरक्षा तंत्र मजबूत कर सकते थे। तब हमारी आस्था का केंद्र सिर्फ मंदिर या मंत्र नहीं थे। उसमें नदी, सूर्य, चंद्र, जीव, जंतु और मनुष्य से भी प्रार्थना करके हम रोग मुक्त होते थे, क्योंकि उस प्रार्थना में छिपी हुई आस्था हमारी इम्युनिटी को इतना अधिक बढ़ा देती थी कि हम बड़ी से बड़ी स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों का सामना कर पाते थे। 
Representational Picture 


 आज भी यह स्थापित तथ्य है कि रोगी का विश्वास ही उसे ठीक करता है। आस्था ही सबसे बड़ी रोग प्रतिरोधक शक्ति है। अगर आप देखें तो वैद्य का नजरिया बड़ा पॉजिटिव होता है। जब वह कहते हैं कि 'कुछ नहीं है तुम्हें, सब ठीक हो जाएगा।' तो सांत्वना के ये स्वर किसी टॉनिक से कम नहीं होते थे। उस दौर में वैद्य से दिलासे और औषधि के साथ ही मंदिर से प्रसाद और आशीर्वाद मिल जाता था। परिवार में सबकी शुभेच्छा प्राप्त होती थीं और देखते ही देखते बड़ी से बड़ी बीमारी से मुक्ति मिल जाती थी। इसके उलट यदि आप आधुनिक चिकित्सा की दृष्टि से देखें तो उसमें तमाम जांच कराने की सलाह दी जाती हैं। उससे न चाहते हुए भी तमाम आशंकाएं घर करने लगती हैं। रोगी को डरा देना, सशंकित कर देना, भयभीत कर देना नया चलन बन गया है। 

ऐसा माहौल बना दिया जाता है कि बीमारी से निजात पाने के बाद भी रोगी का दवाओं से नाता बना रहे। ऐसी परिस्थितियों के लिए हमारे नीति-नियंता ही जिम्मेदार हैं। देश के स्वतंत्र होने के बाद से ही उन्होंने भारतीय संस्कृति और पारंपरिक ज्ञान की उपेक्षा की। गांव में बैठा हुआ अनुभवी वैद्य, जो पीढ़ी दर पीढ़ी लोगों को स्वास्थ्य सेवाएं दे रहा था। जो आरोग्यकारक आहार-विहार का शिक्षक था। सबसे पहले उसे झोलाछाप घोषित किया गया। वह सदियों से वही काढ़ा पिलाकर गरीब और दूर-दराज के रोगियों का इलाज कर रहा है जिसे सरकार आज लोगों को पीने की सलाह दे रही है। कभी उसका दस्तावेजीकरण, शोध या प्रशिक्षित कराने की कोशिश नहीं की गई कि उसके इलाज से लोग क्यों ठीक हो रहे हैं? इसके बजाय एलोपैथिक गोलियों और इंजेक्शन का महिमामंडन किया गया। जबकि कई मामलों में उनके साइडइफेक्ट उस बीमारी से भी बड़े हैं जिसके लिए वे दवाइयां खाई जा रहीं है। इसका परिणाम यह हुआ है कि आयुर्वेद की बकायदा डिग्री लेने के बावजूद वैद्य एलोपैथी दवाएं लिखने का मोह नहीं छोड़ सका। भारत को मात्र एक बाजार मानने वाली फार्मा कंपनियां लगातार यह कहती रहीं कि देश का पारंपरिक ज्ञान बहुत पिछड़ा हुआ है और इस कारण भरोसेमंद नहीं है। बावजूद इसके वे खुद हल्दी, लहसुन, तुलसी और नीम जैसी हमारी परंपरागत औषधियों का पेटेंट कराती रहीं और अपने ही देश में उन्हें दुत्कारती रहीं।

 इस बीच एक बड़ा सवाल यही है कि इन वैश्विक मुनाफाखोरों के टीकों पर मानव का अस्तित्व कब तक टिकेगा? आपात स्थितियों में आधुनिक चिकित्सा पद्धति निःसंदेह रामबाण है। उसकी वैज्ञानिक खोजें, जांच, यंत्र और ऑपरेशन थियेटर आदि सभी महत्वपूर्ण हैं। लेकिन हमारी परंपरा और इस आधुनिकता के बीच सामंजस्य बैठाने में सरकारों की भूमिका ढुलमुल रही। आयुष मंत्रालय के गठन में ही बिलंब हुआ। संगठित सूरमाओं का वर्चस्व बढ़ाने के लिए भारतीय चिकित्सा पद्धतियों की निरंतर अवहेलना की गई। योग्य पारंपरिक चिकित्सकों को समर्थन देकर उनका हौसला बढ़ाने के बजाय उलटे उन्हें हतोत्साहित ही किया गया। हालात बिगाड़ने में रही-सही कसर लगातार फलते-फूलते उपभोक्तावाद ने पूरी कर दी। #नाड़ीपरीक्षण #pulsediagnosis #हस्तरेखा परीक्षण #PalmVeda और स्वप्न विश्लेषण #dreamanalysis ऐसी विधाएँ है जिस दिन #दुनिया  समझ पायेगी उस दिन #moderndiagnosis की अवधारणा धरी रह जाएगी.    इसने संयुक्त परिवार की हमारी समृद्ध परंपरा पर प्रहार किया और मानव को महज एक उपभोक्ता के रूप में रूपांतरित कर दिया। 

अधिक से अधिक सुख की चाह ने भौतिक संसाधनों के प्रति एक अंतहीन लालसा पैदा कर दी। उन्हें जुटाने की भागदौड़ में हमने अपने तन और मन का संतुलन ही बिगाड़ दिया। परिणामस्वरूप शुगर, बीपी और हाइपरटेंशन जैसी जीवनशैली से जुड़ी तमाम बीमारियों ने अपना शिकंजा कस लिया। इसमें यहां तक कहा गया कि जो दवा शुरू होगी वह बंद नहीं होगी। इससे उपजे अवसाद से राहत दिलाने के लिए वह परिवार भी हमारे पास नहीं रहा जिससे हम आधुनिकता के फेर में पीछा छुड़ा चुके थे। ऐसे में कोरोना संकट से उपजे ठहराव ने हमें आज पुन: विचार करने का समय और अवसर दिया है। मौजूदा हालात का विश्लेषण यही संकेत करता है कि हमें अपनी प्राचीन संस्कृति और मूल्यों को पहचान कर प्रकृति के साथ सामंजस्य बनाकर चलना होगा। यही समय की मांग है। इसी में सबकी भलाई है। तभी हम सही अर्थों में पुन: आत्मनिर्भर हो पाएंगे।

 लेखक-आयुर्वेद एवं हस्तरेखा विज्ञान के जानेमाने लेखक, वक्ता एवं परामर्शदाता हैं.

Saturday, December 12, 2020

बाजार डर बेचता है?

सौर मंडल में ग्रहण की स्थिति कुछ भी रहे लेकिन मन में ग्रहण नहीं लगना  चाहिए सौर मंडल में जो चंद्रमा है वो हमारा मन है और राहु भय  और अंधकार का प्रतीक   है तो जब भी हम भय का शिकार होते  है अज्ञान का शिकार होते हैं चिंता का शिकार होते हैं स्ट्रेस का शिकार होते हैं तो हमारी अंदर ग्रहण शुरू हो जाता है..  हम  चंद्र ग्रहण की परवाह करते हैं लेकिन अपने  मन ग्रहण की कभी परवाह नहीं करती है चंद्र ग्रहण महीने में 3 बार लगा  तो  हमारी चिंता का विषय बन जाता है लेकिन मन में ग्रहण महीने में 30 बार लगते हैं तब हमें चिंता नहीं होती जबकि उसकी ज़्यादा चिंता होनी चाहिए जिन्हें पृथ्वी में रहना है उन्हें ये सब सहना  होगा। #BestPalmistinIndia 
हमारे ऋषियों ने कहा है कि यत पिंडे तत  ब्रह्माण्डे  यानी जो हमारी अंदर है  वही बाहर ब्रह्माण्ड में है इसलिए जो अंदर सब चीज़ों को देख लेता है जो बाहर की सभी चीज़ों से मुक्त हो जाता है क्योंकि बाहर जो भी दिखता है संसार में वह हमारे अंदर  मौजूद है।   इसलिए ज्ञानियों ने कहा है कि सत्य बाहर नहीं भीतर है।  #HandReading
लेकिन भय चूँकि बिकता है भय  बिकाऊ है भय  बहुत बड़ा बाज़ार खड़ा करता है इस लिहाज़ से जब वैश्विक भय  का वातावरण है ऐसे में डॉक्टर, ज्योतिषी ,,सरकार बाज़ार सब भय  का दोहन करने में जुट गए हैं।   वर्तमान में कितना बड़ा बाज़ार खड़ा हो गया है ये हमें दिखाई नहीं देता है। #Palmistry
 
ये सच है कि करोना आख़री  संकट नहीं है लेकिन इससे कितना डरा जाए ये आपको तय करना होगा हाथ धोना ,मास्क लगाना , दूरी रखना इसके बावजूद भी तो डरना है ये आपको  समझने की बात यह है कि वायरस को मृत्यु का पर्याय न बनाएँ।  सावधानी और डर में फ़रक  लोगों को बताएँ आज चाहे सूर्यग्रहण चाहे   चंद्र ग्रहण लोगों सब डरावने हो गए हैं लेकिन सबसे डरावना है बाज़ार।  जहाँ सोच सिर्फ़ उपभोक्तावादी है यानी कि इस डर से क्या क्या  बिक सकता है  के अलावा कुछ भी महत्वपूर्ण नहीं है ऐसे में ज़रूरत से सावधान रहने की जागरूक रहने की प्रकाश में रहने की।  अंधकार ,  उदासी,  डिप्रेशन ,अज्ञान और डर को छोड़ देंगे  और ये तभी होगा जब अपना दीपक ख़ुद बन जायेंगे । #LivePalmReading 

Wednesday, January 4, 2017





आदिकाल से ही मनुष्य   के मन में आने वाले समय यानि भविष्य को जानने की जिज्ञासी रही है।  हर मनुष्य जानना चाहता है की कल क्या होगा? या आज जो मैं कर्म कर रहा हूँ उसका परिणाम क्या होगा ? कर्म तो हर आदमी करता है लेकिन फल कब मिलेगा ? इन्ही सवालों का जवाब हमें मिलता है ज्योतिषशास्त्र  में। 

ज्योतिष  वेद का तीसरा नेत्र है। ज्योतिषीय  गणनाएं शुद्ध गणित पर आधारित हैं जिनका लोहा आज के वैज्ञानिक भी मानते हैं।  चाहे चंद्रग्रहण , सूर्य ग्रहण जैसी खगोलीय घटनाएं हो या किसी का व्यक्तिगत जन्माङ्क  बना हो हमारे विद्वान ज्योतिषाचार्यों द्वारा बनाये गए  पंचांङग  कभी भूल चूक नहीं करते है। 
  लेकिन जब किसी  मनुष्य को अपना जन्म समय ज्ञात न हो तो जन्मकुंडली बनाना  एवं उसके बारे में कुछ बता पाना  लगभग असंभव हो जाता है। ऐसा केवल तभी होता है जब लोग केवल  जन्मकुंडली को ही ज्योतिष समझ लेते हैं।  जन्मकुंडली के अलावा हस्तरेखा विज्ञानं है जो आपके हाथ की लकीरों में ही आपकी जन्मकुंडली दिखा देता है। फिर अंक विज्ञानं है और मुखाकृति विज्ञानं के अलावा अनेक माध्यम हैं जिनसे आपके भाग्य की झलक मिल जाती है. लेकिन हस्तरेखा विज्ञानं आज अपनी उन्नत अवस्था में है और आपके जीवन की हर घटना का विस्तृत व्योरा देने में सक्षम है। आपका स्वभाव , आपका स्वास्थ्य, आपके सम्बन्ध कैसे रहेंगे ? आप अपना व्यवहार कैसा रखें ? समय  समय पर अपना हाथ  देखकर या  दिखाकर समय  के अनुसार  चलना  हम सीख सकते हैं। इसीलिए   हमारे  ऋषियों ने सुबह सबसे  पहले अपना हाथ देखने की शिक्षा दी-


 कराग्रे बसते लक्ष्मी करमध्ये सरस्वती। 
करमूले तु  गोविंद प्रभाते कर दर्शनम। ।

क्योंकि हमारे हथेली के रंग एवं प्रभाव रेखाओ में होने वाले परिवर्तन हमारे आने वाले  समय  में  सुख एवं दुखों के संकेत लिए होते हैं और जो इन संकेतों को समय रहते समझ लेते हैं वे दुखों से काफी हद तक बचने में कामयाब हो जाते हैं। 

ज्योतिष को सिर्फ भविष्य बताने का माध्यम समझना ऐसी ही भूल होगी जैसी जीवन का उद्देश्य सिर्फ पैसा कमाना है। जीवन में सेवा, सत्संग,  परोपकार, ध्यान, संगीत , प्रकृति , चित्रकारी और पर्यटन को छोड़कर  सिर्फ पैसा पैसा कमाना, पैसे के पीछे भागना, पैसे के लिए सम्बन्ध बनाना , पैसे के लिए यात्रा करना , केवल पैसे का ही चिंतन करना मनुष्य को वास्तविक सुख से दूर ले जाता है।
  ज्योतिष हमें सिखाता है की अगर अच्छे फल पाना है तो पहले अच्छे कर्म करने होंगे।  अच्छे सम्बन्ध बनाने होंगे सबके हितों का ध्यान रखना होगा चाहे वे मित्र हों, रिश्तेदार हो, पडोसी हों, संसार हों ,जिव जंतु, पशु पक्षी, चाँद तारे , नदियां पर्वत  सबसे संवाद बनाये रखकर सबके हित की बात सोचकर ही सबमे परमात्म भाव रखकर ही हम इस संसार में सुखी रह सकते हैं। इसलिए हमने रिश्तों को ग्रहों से जोड़ा सूर्य पिता, चन्द्रमा माता, मंगल भाई, बुध बहन , तुलसी , पीपल,  गौमाता , चिड़िया ,चींटी , नदी, पर्वत आकाश सबकी पूजा करना सबको प्रशन्न  रखना सिखाया इसके अलावा कोई रास्ता नहीं है मनुष्य के सुख से रहने का। 

ज्योतिष में मुहूर्त और नक्षत्र का चिंतन बहुत वैज्ञानिक है ।लेकिन उससे भी ज्यादा महत्व इस बात का है कि इससे हमें टाइम मैनेजमेंट और अनुशाशन सीखने को मिलता है। अगर हमे कोई  छूट देदे की अगले सप्ताह में कभी भी इंटरव्यू के लिए आ जाना तो शायद पूरा सप्ताह निकल जाये और हमें समय न मिले लेकिन अगर पंडित जी बता दें की सोमवार सुबह १०.१० से १०. ५५ के बीच शुभ मुहूर्त है इस बीच इंटरव्यू देने से सम्पूर्ण  सफलता मिलेगी तो हमारा उत्साह बढ़ जाता है, आलस्य ख़त्म हो जाता है हम ज्यादा एकाग्रता से काम करते हैं। इसी तरह हमारी बुरी आदतें 
ग्रहों को प्रशन्न करने के लिए किये गए उपायों, नियमो के दौरान छूट  जाती हैं।  

 चर्चा  चाहे रेडियो में चले या टीवी  में, मैं हमेशा कहता हूँ की ज्योतिष की ताकत को अभी तक  पहचाना नहीं गया. यह ऐसी पवित्र विद्या है जो न सिर्फ मनुष्य को नैतिक पतन से बल्कि सामाजिक बुराईयों से दूर रखने की क्षमता रखती है।  ज्योतिष के सही प्रयोग से एक अच्छे व्यक्ति एवं श्रेष्ठ समाज का निर्माण संभव है। बच्चों का हाथ देखकर बचपन में ही आगाह किया जा सकता है की इन्हें किन बुराईयों से बचाना है या इनमे कौन से गुण हैं जो इन्हें विश्वव्यापी शोहरत दिलाएंगे ? हमारे शोध जिस गति से जारी हैं मुझे आशा है की जिस तरह हम बच्चों के आँखों की जाँच करते हैं, दाँतों की जाँच करते हैं उसी प्रकार उनके हाथों की जाँच कराएँगे और उन्हें बेहतर इंसान बनाएंगे। 

ज्योतिष का सर्वाधिक नुक्सान ३  तरह के लोगो ने किया है एक वे जिन्होंने ज्योतिष का बिना अध्ययन किये ही उसे अन्धविश्वास मान लिया और दुसरे वे जिन्होंने अध्ययन तो किया लेकिन 
उसके बारे में लोगो समझाया नहीं , संकोची और अंतर्मुखी  स्वाभाव होने के कारन  तथ्यों को समाज के सामने सही तरीके से प्रस्तुत नहीं कर पाए  .  और तीसरे वे जो केवल एक दो किताबें पढ़कर   अपना व्यवसाय बढ़ाते रहे और  रत्न, ताबीज़ छल्ले,  जैसे प्रोडक्ट बेचते रहे। ज्योतिष उपासना का विषय है  बिना संयम, सेवाभावना  एवं इष्टकृपा के इसके गूढ़ रहस्यों को नहीं समझा  जा सकता है। यद्यपि सच्चे उपासकों को भौतिक आवश्यकताएं  भी पूरी  हो जाती है लेकिन यह उसका उद्देश्य नहीं होता। 

ज्योतिष का आकाश  बहुत बृहत एवं विशाल है ज्योतिष कहता है की हम पूरे ब्रम्हांड से जुड़े हैं कुछ भी अलग नहीं है "यत पिंड तत ब्रह्माण्डे । बाहर  सारे ब्रम्हांड में जो कुछ भी है  वह सब हमारे अंदर भी है अतः बाहर  संसार में किया गया कोई भी असत्य, अन्याय, विध्वंश से हम अछूते नहीं रह सकते अतः हम अपने मन, वचन, कर्म को सही दिशा दें तभी हम उज्जवल भविष्य की रचना कर सकते हैं। सारे संसार के नोट भी  हमारे अकाउंट में आ जाएँ तो भी हम सुखी नहीं हो सकते हैं अगर कोई  मनुष्य भूखा सो रहा है हमारे  आसपास।

, ज्योतिष कहती है कि अगर दुखी हो 
 शनि से पीड़ित हो तो जाकर भूखे को भोजन कराओ।  यानि संतुलन लाओ असंतुलन से दुखी हो। तराजू एक तरफ झुक जा रहा है इसलिए पीड़ा है अतः दुसरे पलड़े में कुछ रखो संतुलन आएगा तो सुख आएगा  यही तो शनि का काम है न्याय करना। न्याय के देवता शनि हैं तराजू लेकर खड़े हैं।  यह तो सामाजिक संतुलन की बात है अगर आध्यात्मिक दृष्टि से देखें तो ज्योतिष कहती है 
कि तुम्हे चिंता की जरूरत नहीं है अपना कर्म करते रहो यह संसार जिस शक्ति से चल रहा है वह तुम्हे भी संभाल लेगी तुम कुछ भी नहीं हो जो शक्ति सूर्य के ताप को नियंत्रित रखती है और समुद्र को  सीमाओं में रखती है पहाड़ों को स्थिर रखती है और आसमान से  विशाल ग्रहों और तारों को तुम्हारे ऊपर गिरने नहीं देती सम्हाल लेती है वही शक्ति तुम्हे भी संम्हाल लेगी। तुम शांति से अपना काम करो , होशपूर्ण बने रहो और जीवन का आनन्द लो और उस शक्ति (परमात्मा ) का धन्यवाद व्यक्त करो। 

Tuesday, July 7, 2015

DU Appreciation.

http://www.du.ac.in/du/uploads/Gandhi%20Bhawan/30062015_GB.pdf

My special talk on #yoga & #Ayurveda is being appreciated by #DelhiUniversity website follow link refer page 4.
Thanks to all.

Friday, June 26, 2015

दिल्ली में आयोजित हुई योग एवं आयुर्वेद कार्यशाला सम्पन्न


Date: June 01, 2015in: हेल्थ0 Comments103 Views
दिल्ली में आयोजित हुई योग एवं आयुर्वेद कार्यशाला सम्पन्न Current Crime+1Current Crime0 
कुलपति श्री दिनेश सिंह, पोफेसर अनीता शर्मा, प्रो चक्रवर्ती सहित अनेक शिक्षा विद एवं छात्रों ने भाग लिया

नई दिल्ली। मुख्या वक्त के रूप में  बोलते हुए डॉ लक्ष्मीकान्त  त्रिपाठी ने कहा कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पध्यति  है इसमे न सिर्फ रोगो के बारे में , बल्कि रोगो से बचाव उनके उपचार अवं दीर्घायु के बारे में विस्तार से बताया गया है आहार निद्रा अवं बृह्मचर्य के नियमो  का पालन करके मनुष्य १०० वर्ष तक स्वस्थ्य अवं निरोग रह सकता है. आयुर्वेदा का अर्थ है- आयु= जीवन , वेद = ज्ञान  यानि जीवन को निरोग दीर्घायु अवं सार्थक बनाने का जो भी ज्ञान है वह सब हमें आयुर्वेदा से मिलता है। (latest health hindi news in delhi ncr)
आयुर्वेदा के अनुसार हमारा शरीर ३ दोषो से मिलकर बना है १ वात  २ पित्त ३ कफ    इन तीनो का समान यानि संतुलित होना ही स्वास्थ्य कहलाता है और इनका असंतुलित यानि दूषित होना ही बीमारियो का कारन बनता है इसीलिए इन्हे त्रिदोष कहा जाता है.
जिनकी वायु प्रकृति है उन्हें जोड़ो में दर्द सर दर्द पेट में गैस जल्दी होतीहै उन्हें गरिष्ठ बासी भोजन नहीं लेना चाहिए  से और ताज़ा भोजन लेना चाहिए  व्यायाम  सैर और प्राणायाम करना चाहिए  पित्त प्रकृति है उन्हें ज्वर जलन चक्कर फोड़े  जल्दी होते हैं
अतः उन्हें चाय सिगरेट शराब काफी धुप अग्नि का सेवन नहीं करना चाहिए  पानी और फलो का सेवन ज्यादा करना चाहिए  जिनकी कफ प्रकृति है उन्हें सर्दी खांसी सूजन मोटापा पाइल्स जल्दी होती है अतः उन्हें दही आइसक्रीम मैदा मिठाई पकवान कम खाना चाहिए.

योग और आयुर्वेद में बहुत समानता है दोनों  का उद्गम भारत में हुआ दोनों मनुष्य की शुद्धि अवं विकास पर जोर देते है ( प्रशन्न आत्मेन्द्रियमनश्च ) आयुर्वेदा शरीर की शुद्धि  पंचकर्म से और योग ख्टकर्म से करता है अष्टांग आयुर्वेद के भी हैं और अष्टांग योग भी है.
आयुर्वेद में आहार- यानि खाना क्या खाएं कब खाए कैसे खाएं और विहार- यानि दिनचर्या अवं व्यायाम पर बहुत जोर देता है और योग भी
युक्ताहार विहारस्य युक्तचेस्टस्य कर्मसु.
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवतु दुःखहा। ।

यानि समान सिद्धांतों और निर्देशो के साथ आयुर्वेद और योग हमारे जीवन को सार्थक स्वस्थ अवं निरोग बनाने का वचन देते हैं.
आज की भागदौड़ तनाव प्रतिश्पर्धा भरी जिंदगी में जब शुगर, ह्रदय रोग, अवं डिप्रेशन महामारी का रूप ले रहे है आयुर्वेद और योग मनुष्य जाति के लिए वरदान है और यह सौभाग्य का विषय है की सरकार और सारे विश्व में आज इसके महत्व को पहचाना गया है लेकिन उससे भी जरूरी है की हम सब प्रकृति के प्रति जागरूक हों और जिन ५ तत्वों से हमारा निर्माण हुआ है पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश  उन्हें नष्ट  होने से प्रदूषित होने से बचाएं तभी आशा रखें की हम भी  बचे रहेंगे।
कार्यशाला का समापन करते हुए विवि के कुलपति श्री दिनेश सिंह ने सभी से योग अवं आयुर्वेद को अपनाने का आह्वान किया उन्होंने कहा की डॉ लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी में निष्काम सेवा की प्रवृति है और उनकी पुस्तक ‘जीते रहो’  मानव जीवन का स्पष्ट मैप है।

Tuesday, June 9, 2015

योगो भवति दुःखहा।

२९ मई २०१५ को  योग एवं आयुर्वेद पर कार्यशाला सम्पन्न हुई जिसमें कुलपति श्री दिनेश सिंह पोफेसर अनीता शर्मा प्रो चक्रवर्ती सहित अनेक शिक्षा विद एवं छात्रों ने भाग लिया. 

मुख्य वक्ता के रूप में  बोलते हुए डॉ लक्ष्मीकान्त  त्रिपाठी ने कहा कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पध्यति  है इसमे न सिर्फ रोगो के बारे में ,
बल्कि रोगो से बचाव उनके उपचार अवं दीर्घायु के बारे में विस्तार से बताया गया है आहार निद्रा अवं बृह्मचर्य के नियमो  का पालन करके मनुष्य १०० वर्ष तक स्वस्थ्य अवं निरोग रह सकता है. आयुर्वेदा का अर्थ है- आयु= जीवन , वेद = ज्ञान  यानि जीवन को निरोग दीर्घायु अवं सार्थक बनाने का जो भी ज्ञान है वह सब हमें आयुर्वेदा से मिलता है।
आयुर्वेदा के अनुसार हमारा शरीर ३ दोषो से मिलकर बना है १ वात  २ पित्त ३ कफ    इन तीनो का समान यानि संतुलित होना ही स्वास्थ्य कहलाता है और इनका असंतुलित यानि दूषित होना ही बीमारियो का कारन बनता है इसीलिए इन्हे त्रिदोष कहा जाता है.
जिनकी वायु प्रकृति है उन्हें जोड़ो में दर्द सर दर्द पेट में गैस जल्दी होतीहै उन्हें गरिष्ठ बासी भोजन नहीं लेना चाहिए  से और ताज़ा भोजन लेना चाहिए  व्यायाम  सैर और प्राणायाम करना चाहिए  पित्त प्रकृति है उन्हें ज्वर जलन चक्कर फोड़े  जल्दी होते हैं
अतः उन्हें चाय सिगरेट शराब काफी धुप अग्नि का सेवन नहीं करना चाहिए  पानी और फलो का सेवन ज्यादा करना चाहिए  जिनकी कफ प्रकृति है उन्हें सर्दी खांसी सूजन मोटापा पाइल्स जल्दी होती है अतः उन्हें दही आइसक्रीम मैदा मिठाई पकवान कम खाना चाहिए.

योग और आयुर्वेद में बहुत समानता है दोनों  का उद्गम भारत में हुआ दोनों मनुष्य की शुद्धि अवं विकास पर जोर देते है ( प्रशन्न आत्मेन्द्रियमनश्च ) आयुर्वेदा शरीर की शुद्धि  पंचकर्म से और योग ख्टकर्म से करता है अष्टांग आयुर्वेद के भी हैं और अष्टांग योग भी है.
आयुर्वेद में आहार- यानि खाना क्या खाएं कब खाए कैसे खाएं और विहार- यानि दिनचर्या अवं व्यायाम पर बहुत जोर देता है और योग भी
युक्ताहार विहारस्य युक्तचेस्टस्य कर्मसु. 
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवतु दुःखहा। ।

यानि समान सिद्धांतों और निर्देशो के साथ आयुर्वेद और योग हमारे जीवन को सार्थक स्वस्थ अवं निरोग बनाने का वचन देते हैं.
आज की भागदौड़ तनाव प्रतिश्पर्धा भरी जिंदगी में जब शुगर, ह्रदय रोग, अवं डिप्रेशन महामारी का रूप ले रहे है आयुर्वेद और योग मनुष्य जाति के लिए वरदान है और यह सौभाग्य का विषय है की सरकार और सारे विश्व में आज इसके महत्व को पहचाना गया है लेकिन उससे भी जरूरी है की हम सब प्रकृति के प्रति जागरूक हों और जिन ५ तत्वों से हमारा निर्माण हुआ है पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश  उन्हें नष्ट  होने से प्रदूषित होने से बचाएं तभी आशा रखें की हम भी  बचे रहेंगे।
कार्यशाला का समापन करते हुए विवि के कुलपति श्री दिनेश सिंह ने सभी से योग अवं आयुर्वेद को अपनाने का आह्वान किया उन्होंने कहा की डॉ लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी में निष्काम सेवा की प्रवृति है और उनकी पुस्तक 'जीते रहो'  मानव जीवन का स्पष्ट मैप है।
    
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