Tuesday, July 7, 2015

DU Appreciation.

http://www.du.ac.in/du/uploads/Gandhi%20Bhawan/30062015_GB.pdf

My special talk on #yoga & #Ayurveda is being appreciated by #DelhiUniversity website follow link refer page 4.
Thanks to all.

Friday, June 26, 2015

दिल्ली में आयोजित हुई योग एवं आयुर्वेद कार्यशाला सम्पन्न


Date: June 01, 2015in: हेल्थ0 Comments103 Views
दिल्ली में आयोजित हुई योग एवं आयुर्वेद कार्यशाला सम्पन्न Current Crime+1Current Crime0 
कुलपति श्री दिनेश सिंह, पोफेसर अनीता शर्मा, प्रो चक्रवर्ती सहित अनेक शिक्षा विद एवं छात्रों ने भाग लिया

नई दिल्ली। मुख्या वक्त के रूप में  बोलते हुए डॉ लक्ष्मीकान्त  त्रिपाठी ने कहा कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पध्यति  है इसमे न सिर्फ रोगो के बारे में , बल्कि रोगो से बचाव उनके उपचार अवं दीर्घायु के बारे में विस्तार से बताया गया है आहार निद्रा अवं बृह्मचर्य के नियमो  का पालन करके मनुष्य १०० वर्ष तक स्वस्थ्य अवं निरोग रह सकता है. आयुर्वेदा का अर्थ है- आयु= जीवन , वेद = ज्ञान  यानि जीवन को निरोग दीर्घायु अवं सार्थक बनाने का जो भी ज्ञान है वह सब हमें आयुर्वेदा से मिलता है। (latest health hindi news in delhi ncr)
आयुर्वेदा के अनुसार हमारा शरीर ३ दोषो से मिलकर बना है १ वात  २ पित्त ३ कफ    इन तीनो का समान यानि संतुलित होना ही स्वास्थ्य कहलाता है और इनका असंतुलित यानि दूषित होना ही बीमारियो का कारन बनता है इसीलिए इन्हे त्रिदोष कहा जाता है.
जिनकी वायु प्रकृति है उन्हें जोड़ो में दर्द सर दर्द पेट में गैस जल्दी होतीहै उन्हें गरिष्ठ बासी भोजन नहीं लेना चाहिए  से और ताज़ा भोजन लेना चाहिए  व्यायाम  सैर और प्राणायाम करना चाहिए  पित्त प्रकृति है उन्हें ज्वर जलन चक्कर फोड़े  जल्दी होते हैं
अतः उन्हें चाय सिगरेट शराब काफी धुप अग्नि का सेवन नहीं करना चाहिए  पानी और फलो का सेवन ज्यादा करना चाहिए  जिनकी कफ प्रकृति है उन्हें सर्दी खांसी सूजन मोटापा पाइल्स जल्दी होती है अतः उन्हें दही आइसक्रीम मैदा मिठाई पकवान कम खाना चाहिए.

योग और आयुर्वेद में बहुत समानता है दोनों  का उद्गम भारत में हुआ दोनों मनुष्य की शुद्धि अवं विकास पर जोर देते है ( प्रशन्न आत्मेन्द्रियमनश्च ) आयुर्वेदा शरीर की शुद्धि  पंचकर्म से और योग ख्टकर्म से करता है अष्टांग आयुर्वेद के भी हैं और अष्टांग योग भी है.
आयुर्वेद में आहार- यानि खाना क्या खाएं कब खाए कैसे खाएं और विहार- यानि दिनचर्या अवं व्यायाम पर बहुत जोर देता है और योग भी
युक्ताहार विहारस्य युक्तचेस्टस्य कर्मसु.
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवतु दुःखहा। ।

यानि समान सिद्धांतों और निर्देशो के साथ आयुर्वेद और योग हमारे जीवन को सार्थक स्वस्थ अवं निरोग बनाने का वचन देते हैं.
आज की भागदौड़ तनाव प्रतिश्पर्धा भरी जिंदगी में जब शुगर, ह्रदय रोग, अवं डिप्रेशन महामारी का रूप ले रहे है आयुर्वेद और योग मनुष्य जाति के लिए वरदान है और यह सौभाग्य का विषय है की सरकार और सारे विश्व में आज इसके महत्व को पहचाना गया है लेकिन उससे भी जरूरी है की हम सब प्रकृति के प्रति जागरूक हों और जिन ५ तत्वों से हमारा निर्माण हुआ है पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश  उन्हें नष्ट  होने से प्रदूषित होने से बचाएं तभी आशा रखें की हम भी  बचे रहेंगे।
कार्यशाला का समापन करते हुए विवि के कुलपति श्री दिनेश सिंह ने सभी से योग अवं आयुर्वेद को अपनाने का आह्वान किया उन्होंने कहा की डॉ लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी में निष्काम सेवा की प्रवृति है और उनकी पुस्तक ‘जीते रहो’  मानव जीवन का स्पष्ट मैप है।

Tuesday, June 9, 2015

योगो भवति दुःखहा।

२९ मई २०१५ को  योग एवं आयुर्वेद पर कार्यशाला सम्पन्न हुई जिसमें कुलपति श्री दिनेश सिंह पोफेसर अनीता शर्मा प्रो चक्रवर्ती सहित अनेक शिक्षा विद एवं छात्रों ने भाग लिया. 

मुख्य वक्ता के रूप में  बोलते हुए डॉ लक्ष्मीकान्त  त्रिपाठी ने कहा कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पध्यति  है इसमे न सिर्फ रोगो के बारे में ,
बल्कि रोगो से बचाव उनके उपचार अवं दीर्घायु के बारे में विस्तार से बताया गया है आहार निद्रा अवं बृह्मचर्य के नियमो  का पालन करके मनुष्य १०० वर्ष तक स्वस्थ्य अवं निरोग रह सकता है. आयुर्वेदा का अर्थ है- आयु= जीवन , वेद = ज्ञान  यानि जीवन को निरोग दीर्घायु अवं सार्थक बनाने का जो भी ज्ञान है वह सब हमें आयुर्वेदा से मिलता है।
आयुर्वेदा के अनुसार हमारा शरीर ३ दोषो से मिलकर बना है १ वात  २ पित्त ३ कफ    इन तीनो का समान यानि संतुलित होना ही स्वास्थ्य कहलाता है और इनका असंतुलित यानि दूषित होना ही बीमारियो का कारन बनता है इसीलिए इन्हे त्रिदोष कहा जाता है.
जिनकी वायु प्रकृति है उन्हें जोड़ो में दर्द सर दर्द पेट में गैस जल्दी होतीहै उन्हें गरिष्ठ बासी भोजन नहीं लेना चाहिए  से और ताज़ा भोजन लेना चाहिए  व्यायाम  सैर और प्राणायाम करना चाहिए  पित्त प्रकृति है उन्हें ज्वर जलन चक्कर फोड़े  जल्दी होते हैं
अतः उन्हें चाय सिगरेट शराब काफी धुप अग्नि का सेवन नहीं करना चाहिए  पानी और फलो का सेवन ज्यादा करना चाहिए  जिनकी कफ प्रकृति है उन्हें सर्दी खांसी सूजन मोटापा पाइल्स जल्दी होती है अतः उन्हें दही आइसक्रीम मैदा मिठाई पकवान कम खाना चाहिए.

योग और आयुर्वेद में बहुत समानता है दोनों  का उद्गम भारत में हुआ दोनों मनुष्य की शुद्धि अवं विकास पर जोर देते है ( प्रशन्न आत्मेन्द्रियमनश्च ) आयुर्वेदा शरीर की शुद्धि  पंचकर्म से और योग ख्टकर्म से करता है अष्टांग आयुर्वेद के भी हैं और अष्टांग योग भी है.
आयुर्वेद में आहार- यानि खाना क्या खाएं कब खाए कैसे खाएं और विहार- यानि दिनचर्या अवं व्यायाम पर बहुत जोर देता है और योग भी
युक्ताहार विहारस्य युक्तचेस्टस्य कर्मसु. 
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवतु दुःखहा। ।

यानि समान सिद्धांतों और निर्देशो के साथ आयुर्वेद और योग हमारे जीवन को सार्थक स्वस्थ अवं निरोग बनाने का वचन देते हैं.
आज की भागदौड़ तनाव प्रतिश्पर्धा भरी जिंदगी में जब शुगर, ह्रदय रोग, अवं डिप्रेशन महामारी का रूप ले रहे है आयुर्वेद और योग मनुष्य जाति के लिए वरदान है और यह सौभाग्य का विषय है की सरकार और सारे विश्व में आज इसके महत्व को पहचाना गया है लेकिन उससे भी जरूरी है की हम सब प्रकृति के प्रति जागरूक हों और जिन ५ तत्वों से हमारा निर्माण हुआ है पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश  उन्हें नष्ट  होने से प्रदूषित होने से बचाएं तभी आशा रखें की हम भी  बचे रहेंगे।
कार्यशाला का समापन करते हुए विवि के कुलपति श्री दिनेश सिंह ने सभी से योग अवं आयुर्वेद को अपनाने का आह्वान किया उन्होंने कहा की डॉ लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी में निष्काम सेवा की प्रवृति है और उनकी पुस्तक 'जीते रहो'  मानव जीवन का स्पष्ट मैप है।
    
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अमृता प्रीतम जी की कलम से

उनकी पत्रिका नागमणि में प्रकाशित यादगार पल

एवं इमरोज़ जी का बनाया रेखाचित्र 1998

विस्तृत विवरण उनकी कालजयी कृति 'काया के दामन में'

Tuesday, June 7, 2011

swami ramdev is also responsible for result!

स्वामी रामदेव जी की हथेली कि रेखाओ के आधार पर उनके जीवन पर एक दृष्टि--

बाबा का हाथ छोटा नुकीला अध्यात्मिक श्रेणी का है , भाग्य रेखा प्रारंभ में मोटी है-
साधारण परिवार में जन्मा लेकर संघर्षपूर्ण जीवन बिताने के बोजूद बाबा राम देव बहुत योग्य लोकप्रिय दयालु एवं बाल स्वाभाव के है. उनकी सरलता ने उन्हें ऊँचा मुकाम दिया है. उनके व्यक्तित्वा में संतो से अधिक तेज और राजनेताओ से भी अधिक जनप्रियता एवं सर्व स्वीकार्यता है.


बाबा कि हथेली में सूर्य क्षेत्र बलवान है, सूर्य रेखा भी लम्बी है- लेकिन गुरु , शनि कि और झुका है- चन्द्र अति विकसित है-
आज देश का कोई भी नेता इतनी भीड़ नहीं जुटा सकता है. वे बहुत अच्छे teamleader है.
उनके अंदर आत्मा प्रशंशा एवं लोककल्यान का भाव है. लेकिन नेत्रत्वा के गुणों का भाव है.
बाबा दिवस्वप्नादर्शी एवं घोर महत्वाकंशी हैं. बाबा कि सफलता के पीछे उनके ज्ञान कि कम विज्ञापन की भूमिका ज्यादा है,.

ह्रदय रेखा लम्बी है, हेड लाइन सीधी है- लाइफ लाइन से जुडी है, रातोंरात सब क़र जाना चाहते है -
वे आदर्शवादी है और सबका भला करना चाहते है लेकिन कैसे करें यह पता नहीं है.
भावनाओ कि नदी में बह जाते हैं.


अंगूठा लम्बा लेकिन पतला है ,तर्क शक्ति बेहतर है बोलते ज्यादा हैं सुनते कम है
वे देशप्रेम एवं राष्ट्र प्रेम का नाम लेकर बहुत बडा परिवर्तन लाना चाहते हैं , लेकिन उनको पूरा करने के लिए जीस साहस एवं त्याग कि जरूरत होती है उसकी उनमे कमी है. वे नाम भगत सिंह जैसा करना चाहते हैं लेकिन परिणाम से डरते हैं.( अपने अनुयायियों को अकेले छोड़कर, महिलाओ के कपडे पहनकर भाग जाना , और कहना मेरा एन्कोउन्टर हो जाता? अगर संकल्प लिया हैं तो त्याग भी करना होता है, सन्यासी को जीवन से कैसा मोह.)

४२ वे साल भाग्य में परिवर्तन सन्यास (शनि) से संसार ( गुरु ) कि ओर-
बाबा के जीवन में बहुत बडा change आया है वे धर्मगुरु से जननेता में बदल चुके है. उनको जल्दी अपनी भूमिका स्पष्ट करनी होगी अन्यथा
इमागे ख़राब होगी और जनाधार खिसकेगा. निष्कासित एवं परित्यक्ता लोगो को अपना सलाहकार बना उन्हें महंगा पड़ा.

हथेली में गुरुवालय है और ह्रदय और मष्तिष्क रेखा के बीच दूरी सामान है ( रोयल लाइफ)-
उनके हाथ में खुद किंग बन्ने का योग नहीं है लेकिन आगे भी वे किंग बनाते रहेंगे..उनके सहयोग से सरकारे बनेगी और बिगड़ेगी.
अगर पूरा विश्लेषण किया जाये तो ४ जून के बाद बाबा का demotion हुआ है . उन्होंने सहस विवेक और धैर्य से काम लिया होता तो उनकी तस्वीर और चमकीली दिखाई देती. आगे उन्हें सुरक्षा एवं स्वस्थ्य के पत\रति सतर्क रहना होगा.

बाबा रामदेव के उज्जवल भविष्य एवं प्रगति कि शुभकामनाओ के साथ .

सादर,
Dr. L K Tripathi


Saturday, July 10, 2010

आपके मन में होता है PET KE रोगों का उदगम!

आपने सुना होगा की किसी के पेट में हमेशा दर्द रहता है गैस बनती है कब्ज़ा रहती है जलन होती है अदि! इसके अलावा उसने कई ड़ोक्टोरो को दिखाया जांचें कराइ लेकिन आराम मिला और नहीं कोई बीमारी पकड़ में
यह तकलीफ कहाँ से रही हैआपके मन से..... जी हाँ! आपका मन ही रोग और आरोग्य का कारन हैज्यादा चिंता करने वालो को पेट में मरोड़ होती हैदुसरे से जलने वालो को पेट में गैस बन जाती है, अल्सर हो जाते है, हमेशा पेट दर्द का रहना यानि अनिर्णय और अनिश्चितता के वातावरण में व्यक्ति जी रहा हैऔर जब तक मन से यह स्थिति नहीं जाती लक्षण समाप्त नहीं होते भले ही कितनी जांचें कराएँ और दवाईया खाएं
कब्ज़ा कौई बीमारी नहीं है जो लोग कंजूस होते है उन्हें कब्ज हो जाती है हर चीज को पकड़ने की आदत हो जाती हैफिर उसे छूटने के लिए कितना चूरन खाते हैं
आदमी को खासकर पेट के रोगों में इलाज से ज्यादा एदुकतिओन और काउंसेलिंग की जरूरत हैजब आदमी अपनी भावनाओ को किसी के साथ शेयर नहीं करता तो भीतर गैस बन जाती हैऔर एन चीजो का कोई इलाज नहीं सिवाय एन ग्रंथियों से मुक्त होने के
मन की हलचल और ऊहापोह से शारीर में वायु का संग्तुलन बिगड़ जाता है यानि प्रकोप हो जय और यही प्रकुपित वायु लाब्म्बे दिगेस्तिवे सिस्टम की स्पीड बाdha या घटा देती हैउसी से उदार रोगों का जन्मा होता है

Friday, June 4, 2010

कैसा हैं आपका चेहरा ?

मनुष्य का चेहरा उसके व्यक्तित्व के बारे में बताता है-

अंडाकार चेहरा- जिस मनुष्य का चेहरा अंडाकार होता है वह आदर्शवादी , भावुक, बेकार की बातें सोचने वाला
कल्पनाशील , दिन में सपने देखने वाला होता है.इन्हे आपने आपको थोडा प्रक्टिकल बनाने का प्रयास करना चहिये
तो जीवन में सुख सफलता ज्यादा मिलेगी।

वर्गाकार चेहरा- जिस मनुष्य का चेहरा देखने में चोकोर लगता है ऐसे लोग बहुत उत्साही ,प्रक्टिकल और प्रगतिशील होते है। ये हार मानकर नहीं बैठते है बल्कि जितने के लिए बार-२ उठ खड़े होते है.इसलिए इनके पास
धन की कमी नहीं रहती है.समस्या तब अति है जब ये काम को बार -२ बदलते हैं.

तिकोना चेहरा-यह बहुत धूर्त और अवसरवादी होते है, इनके अंदर फल का इंतज़ार करने का धैर्य नहीं होता है
अतः ये कच्चे फ्रल ही खा जाते है अर्थात दूसरो को, धोखा देते है। ध्यान और धर्मं के पालण से सुधर होता है.

गोल, चेहरा -
जिन लोगो का चेहरा गोल होता है उन्हें शीशा देखने से फुरशत नहीं मिलती है, ये सोचते है की यदि मेरा चेहरा और अच्छा होता तो ठीक रहता इन्हे याद रखना चाहिए की सौंदर्य चेहरे में नहीं व्यवहार में होता है.इन्हे बेऔटी,
फैशन और क्रेअटिवे प्रयासों में ज्यादा सफलता मिलती है।

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