PalmVeda
Tuesday, February 1, 2022
भारतीय संस्कृति पर भारी बाज़ार| Materialism is exploiting the Indian culture.
हमारे ऋषियों ने मनुष्य के जीवन को 25 - 25 वर्ष के चार भागों में बांट दिया था। जिनमें से प्रथम ब्रह्मचर्य, दूसरा ग्रहस्थ, तीसरा वानप्रस्थ और चौथा संन्यास। ब्रह्मचारी का अर्थ है ब्रह्म जैसी चर्या। सिर्फ वीर्य को धारण करना ब्रह्मचर्य नहीं है। ब्रम्हचर्य मनुष्य जीवन की नींव है। ब्रह्म जैसी चर्या यानि स्वयं की तरफ जाती हुई चेतना का नाम है- ब्रह्मचर्य और दूसरों की तरफ जाती हुई चेतना का नाम कामवासना है। 25 वर्ष के लिए हम #युवकों को भेजते थे गुरुकुल में ताकि भीतर की तरफ बहना सीखें। एक बार आप इस #ऊर्जा को संभाल ले फिर आपको तय करना है कि इसे जारी रखना है या गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना है। लेकिन एक वैश्विक षड्यंत्र के तहत न सिर्फ इसकी निंदा की गई बल्कि बाजार ने ऐसी व्यवस्था की कि मनुष्य कामनाओं के पीछे जीवन भर भागता रहे। बाजार और विज्ञापनों की मृग मरीचिका ने एक ऐसा वातावरण तैयार किया कि मनुष्य जीवन भर बाहर भागता रहे लेकिन स्वयं से मिलने की कभी फुर्सत न मिले। क्षणिक सुखों के पीछे भागने वाले मनुष्य की इंद्रियां ब्रह्मचर्य की महिमा को समझने में सक्षम नहीं हो पाती। अतः जो समझ में आता है वही सत्य लगता है।. Benefits of Neem
आज बाजार, विज्ञापन, फिल्में, सोशल मीडिया, पोर्न कंटेन्ट के माध्यम से जो अश्लीलता हजारों दरवाजों से परोसी जा रही है वहीं युवाओं के मन को चंचल और दुर्बल बनाने का काम कर रही हैं। " संगात्संजायते कामः" जिसके परिणाम स्वरूप शारीरिक एवं मानसिक रूप से दुर्बल होते युवा तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे है । नई पीढ़ी में बढ़ते तलाक , सन्तानहीनता, शुक्राणुओं की कमी के मामले परिणाम के रूप में देखे जा सकते हैं।. Manage your cholesterol
आज जब आप यह लेख पढ़ रहे हैं यौवन दुनिया से विदा हो रहा है। कामुकता परोसने का बाजार का षड्यंत्र आईवीएफ और सरोगेसी के रूप मे फल फूल रहा है। योग से भी ब्रह्मचर्य को बहिष्कृत करके सिर्फ भोगने के साधन के रूप में परोसा जा रहा है। ऐसे युग में जहां चर्चित होना ही एकमात्र लक्ष्य हो। भले ही सार्वजनिक मंच से अपनी ब्रा की चर्चा करनी पड़े या ऐतिहासिक महापुरुषों से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का घृणित प्रयास हो । वहां आपको तय करना है कि क्या दुनिया को डिमांड और सप्लाई के हिसाब से ही चलने दिया जाए? या हर युग में आने वाली अच्छाईयों और बुराइयों की समय के साथ समीक्षा की जाए और उनमें सुधार की संभावना तलाशी जाय? लोग अपनाएं या न अपनाएं अच्छी बातों की चर्चा जरूर होनी चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ियां यह न कहें कि हमें इस बारे में बताया ही नहीं गया।. Live for 100 years
Tuesday, July 27, 2021
भारतीय संस्कृति में आत्मनिर्भरता
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Representational Picture |
Saturday, December 12, 2020
बाजार डर बेचता है?
Wednesday, January 4, 2017
Tuesday, July 7, 2015
DU Appreciation.
http://www.du.ac.in/du/uploads/Gandhi%20Bhawan/30062015_GB.pdf
My special talk on #yoga & #Ayurveda is being appreciated by #DelhiUniversity website follow link refer page 4.
Thanks to all.
Friday, June 26, 2015
दिल्ली में आयोजित हुई योग एवं आयुर्वेद कार्यशाला सम्पन्न
Date: June 01, 2015in: हेल्थ0 Comments103 Views
दिल्ली में आयोजित हुई योग एवं आयुर्वेद कार्यशाला सम्पन्न Current Crime+1Current Crime0
कुलपति श्री दिनेश सिंह, पोफेसर अनीता शर्मा, प्रो चक्रवर्ती सहित अनेक शिक्षा विद एवं छात्रों ने भाग लिया
नई दिल्ली। मुख्या वक्त के रूप में बोलते हुए डॉ लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी ने कहा कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पध्यति है इसमे न सिर्फ रोगो के बारे में , बल्कि रोगो से बचाव उनके उपचार अवं दीर्घायु के बारे में विस्तार से बताया गया है आहार निद्रा अवं बृह्मचर्य के नियमो का पालन करके मनुष्य १०० वर्ष तक स्वस्थ्य अवं निरोग रह सकता है. आयुर्वेदा का अर्थ है- आयु= जीवन , वेद = ज्ञान यानि जीवन को निरोग दीर्घायु अवं सार्थक बनाने का जो भी ज्ञान है वह सब हमें आयुर्वेदा से मिलता है। (latest health hindi news in delhi ncr)
आयुर्वेदा के अनुसार हमारा शरीर ३ दोषो से मिलकर बना है १ वात २ पित्त ३ कफ इन तीनो का समान यानि संतुलित होना ही स्वास्थ्य कहलाता है और इनका असंतुलित यानि दूषित होना ही बीमारियो का कारन बनता है इसीलिए इन्हे त्रिदोष कहा जाता है.
जिनकी वायु प्रकृति है उन्हें जोड़ो में दर्द सर दर्द पेट में गैस जल्दी होतीहै उन्हें गरिष्ठ बासी भोजन नहीं लेना चाहिए से और ताज़ा भोजन लेना चाहिए व्यायाम सैर और प्राणायाम करना चाहिए पित्त प्रकृति है उन्हें ज्वर जलन चक्कर फोड़े जल्दी होते हैं
अतः उन्हें चाय सिगरेट शराब काफी धुप अग्नि का सेवन नहीं करना चाहिए पानी और फलो का सेवन ज्यादा करना चाहिए जिनकी कफ प्रकृति है उन्हें सर्दी खांसी सूजन मोटापा पाइल्स जल्दी होती है अतः उन्हें दही आइसक्रीम मैदा मिठाई पकवान कम खाना चाहिए.
योग और आयुर्वेद में बहुत समानता है दोनों का उद्गम भारत में हुआ दोनों मनुष्य की शुद्धि अवं विकास पर जोर देते है ( प्रशन्न आत्मेन्द्रियमनश्च ) आयुर्वेदा शरीर की शुद्धि पंचकर्म से और योग ख्टकर्म से करता है अष्टांग आयुर्वेद के भी हैं और अष्टांग योग भी है.
आयुर्वेद में आहार- यानि खाना क्या खाएं कब खाए कैसे खाएं और विहार- यानि दिनचर्या अवं व्यायाम पर बहुत जोर देता है और योग भी
युक्ताहार विहारस्य युक्तचेस्टस्य कर्मसु.
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवतु दुःखहा। ।
यानि समान सिद्धांतों और निर्देशो के साथ आयुर्वेद और योग हमारे जीवन को सार्थक स्वस्थ अवं निरोग बनाने का वचन देते हैं.
आज की भागदौड़ तनाव प्रतिश्पर्धा भरी जिंदगी में जब शुगर, ह्रदय रोग, अवं डिप्रेशन महामारी का रूप ले रहे है आयुर्वेद और योग मनुष्य जाति के लिए वरदान है और यह सौभाग्य का विषय है की सरकार और सारे विश्व में आज इसके महत्व को पहचाना गया है लेकिन उससे भी जरूरी है की हम सब प्रकृति के प्रति जागरूक हों और जिन ५ तत्वों से हमारा निर्माण हुआ है पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश उन्हें नष्ट होने से प्रदूषित होने से बचाएं तभी आशा रखें की हम भी बचे रहेंगे।
कार्यशाला का समापन करते हुए विवि के कुलपति श्री दिनेश सिंह ने सभी से योग अवं आयुर्वेद को अपनाने का आह्वान किया उन्होंने कहा की डॉ लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी में निष्काम सेवा की प्रवृति है और उनकी पुस्तक ‘जीते रहो’ मानव जीवन का स्पष्ट मैप है।
Tuesday, June 9, 2015
योगो भवति दुःखहा।
२९ मई २०१५ को योग एवं आयुर्वेद पर कार्यशाला सम्पन्न हुई जिसमें कुलपति श्री दिनेश सिंह पोफेसर अनीता शर्मा प्रो चक्रवर्ती सहित अनेक शिक्षा विद एवं छात्रों ने भाग लिया.
मुख्य वक्ता के रूप में बोलते हुए डॉ लक्ष्मीकान्त त्रिपाठी ने कहा कि आयुर्वेद दुनिया की सबसे प्राचीन चिकित्सा पध्यति है इसमे न सिर्फ रोगो के बारे में ,
बल्कि रोगो से बचाव उनके उपचार अवं दीर्घायु के बारे में विस्तार से बताया गया है आहार निद्रा अवं बृह्मचर्य के नियमो का पालन करके मनुष्य १०० वर्ष तक स्वस्थ्य अवं निरोग रह सकता है. आयुर्वेदा का अर्थ है- आयु= जीवन , वेद = ज्ञान यानि जीवन को निरोग दीर्घायु अवं सार्थक बनाने का जो भी ज्ञान है वह सब हमें आयुर्वेदा से मिलता है।
आयुर्वेदा के अनुसार हमारा शरीर ३ दोषो से मिलकर बना है १ वात २ पित्त ३ कफ इन तीनो का समान यानि संतुलित होना ही स्वास्थ्य कहलाता है और इनका असंतुलित यानि दूषित होना ही बीमारियो का कारन बनता है इसीलिए इन्हे त्रिदोष कहा जाता है.
जिनकी वायु प्रकृति है उन्हें जोड़ो में दर्द सर दर्द पेट में गैस जल्दी होतीहै उन्हें गरिष्ठ बासी भोजन नहीं लेना चाहिए से और ताज़ा भोजन लेना चाहिए व्यायाम सैर और प्राणायाम करना चाहिए पित्त प्रकृति है उन्हें ज्वर जलन चक्कर फोड़े जल्दी होते हैं
अतः उन्हें चाय सिगरेट शराब काफी धुप अग्नि का सेवन नहीं करना चाहिए पानी और फलो का सेवन ज्यादा करना चाहिए जिनकी कफ प्रकृति है उन्हें सर्दी खांसी सूजन मोटापा पाइल्स जल्दी होती है अतः उन्हें दही आइसक्रीम मैदा मिठाई पकवान कम खाना चाहिए.
योग और आयुर्वेद में बहुत समानता है दोनों का उद्गम भारत में हुआ दोनों मनुष्य की शुद्धि अवं विकास पर जोर देते है ( प्रशन्न आत्मेन्द्रियमनश्च ) आयुर्वेदा शरीर की शुद्धि पंचकर्म से और योग ख्टकर्म से करता है अष्टांग आयुर्वेद के भी हैं और अष्टांग योग भी है.
आयुर्वेद में आहार- यानि खाना क्या खाएं कब खाए कैसे खाएं और विहार- यानि दिनचर्या अवं व्यायाम पर बहुत जोर देता है और योग भी
युक्ताहार विहारस्य युक्तचेस्टस्य कर्मसु.
युक्तस्वप्नावबोधस्य योगो भवतु दुःखहा। ।
यानि समान सिद्धांतों और निर्देशो के साथ आयुर्वेद और योग हमारे जीवन को सार्थक स्वस्थ अवं निरोग बनाने का वचन देते हैं.
आज की भागदौड़ तनाव प्रतिश्पर्धा भरी जिंदगी में जब शुगर, ह्रदय रोग, अवं डिप्रेशन महामारी का रूप ले रहे है आयुर्वेद और योग मनुष्य जाति के लिए वरदान है और यह सौभाग्य का विषय है की सरकार और सारे विश्व में आज इसके महत्व को पहचाना गया है लेकिन उससे भी जरूरी है की हम सब प्रकृति के प्रति जागरूक हों और जिन ५ तत्वों से हमारा निर्माण हुआ है पृथ्वी जल वायु अग्नि आकाश उन्हें नष्ट होने से प्रदूषित होने से बचाएं तभी आशा रखें की हम भी बचे रहेंगे।
कार्यशाला का समापन करते हुए विवि के कुलपति श्री दिनेश सिंह ने सभी से योग अवं आयुर्वेद को अपनाने का आह्वान किया उन्होंने कहा की डॉ लक्ष्मी कान्त त्रिपाठी में निष्काम सेवा की प्रवृति है और उनकी पुस्तक 'जीते रहो' मानव जीवन का स्पष्ट मैप है।
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