प्रभु श्री राम के गुरु वशिष्ठ से लेकर #स्वामी_विवेकानंद तक सभी ने #ब्रह्मचर्य के महत्व को स्वीकार किया है। युवाओं में सर्वांगीण विकास के लिए #वैदिक काल से ही ब्रह्मचर्य के पालन पर जोर दिया जाता रहा है । #आयुर्वेद कहता है कि मनुष्य को स्वस्थ रहने के लिये शरीर में वात पित्त कफ इन तीनों का संतुलित रहना जरूरी है। और इन को संतुलित रखने के लिए तीन हथियार (स्तम्भ) हैं जिन्हें #आहार, #निद्रा एवं #ब्रह्मचर्य कहा जाता है।. www.palmveda.com
हमारे ऋषियों ने मनुष्य के जीवन को 25 - 25 वर्ष के चार भागों में बांट दिया था। जिनमें से प्रथम ब्रह्मचर्य, दूसरा ग्रहस्थ, तीसरा वानप्रस्थ और चौथा संन्यास। ब्रह्मचारी का अर्थ है ब्रह्म जैसी चर्या। सिर्फ वीर्य को धारण करना ब्रह्मचर्य नहीं है। ब्रम्हचर्य मनुष्य जीवन की नींव है। ब्रह्म जैसी चर्या यानि स्वयं की तरफ जाती हुई चेतना का नाम है- ब्रह्मचर्य और दूसरों की तरफ जाती हुई चेतना का नाम कामवासना है। 25 वर्ष के लिए हम #युवकों को भेजते थे गुरुकुल में ताकि भीतर की तरफ बहना सीखें। एक बार आप इस #ऊर्जा को संभाल ले फिर आपको तय करना है कि इसे जारी रखना है या गृहस्थ जीवन में प्रवेश करना है। लेकिन एक वैश्विक षड्यंत्र के तहत न सिर्फ इसकी निंदा की गई बल्कि बाजार ने ऐसी व्यवस्था की कि मनुष्य कामनाओं के पीछे जीवन भर भागता रहे। बाजार और विज्ञापनों की मृग मरीचिका ने एक ऐसा वातावरण तैयार किया कि मनुष्य जीवन भर बाहर भागता रहे लेकिन स्वयं से मिलने की कभी फुर्सत न मिले। क्षणिक सुखों के पीछे भागने वाले मनुष्य की इंद्रियां ब्रह्मचर्य की महिमा को समझने में सक्षम नहीं हो पाती। अतः जो समझ में आता है वही सत्य लगता है।. Benefits of Neem
आज बाजार, विज्ञापन, फिल्में, सोशल मीडिया, पोर्न कंटेन्ट के माध्यम से जो अश्लीलता हजारों दरवाजों से परोसी जा रही है वहीं युवाओं के मन को चंचल और दुर्बल बनाने का काम कर रही हैं। " संगात्संजायते कामः" जिसके परिणाम स्वरूप शारीरिक एवं मानसिक रूप से दुर्बल होते युवा तरह-तरह की बीमारियों का शिकार हो रहे है । नई पीढ़ी में बढ़ते तलाक , सन्तानहीनता, शुक्राणुओं की कमी के मामले परिणाम के रूप में देखे जा सकते हैं।. Manage your cholesterol
आज जब आप यह लेख पढ़ रहे हैं यौवन दुनिया से विदा हो रहा है। कामुकता परोसने का बाजार का षड्यंत्र आईवीएफ और सरोगेसी के रूप मे फल फूल रहा है। योग से भी ब्रह्मचर्य को बहिष्कृत करके सिर्फ भोगने के साधन के रूप में परोसा जा रहा है। ऐसे युग में जहां चर्चित होना ही एकमात्र लक्ष्य हो। भले ही सार्वजनिक मंच से अपनी ब्रा की चर्चा करनी पड़े या ऐतिहासिक महापुरुषों से स्वयं को श्रेष्ठ सिद्ध करने का घृणित प्रयास हो । वहां आपको तय करना है कि क्या दुनिया को डिमांड और सप्लाई के हिसाब से ही चलने दिया जाए? या हर युग में आने वाली अच्छाईयों और बुराइयों की समय के साथ समीक्षा की जाए और उनमें सुधार की संभावना तलाशी जाय? लोग अपनाएं या न अपनाएं अच्छी बातों की चर्चा जरूर होनी चाहिए। ताकि आने वाली पीढ़ियां यह न कहें कि हमें इस बारे में बताया ही नहीं गया।. Live for 100 years